शिकारी मदन और सोने की कुल्हाड़ी
मदन एक शिकारी था। वह अक्सर जंगल में अपनी बंदूक के साथ घूमता रहता था । कभी वह जानवरों और पक्षियों का शिकार करता ताकि खाने के लिए मांस मिल सके, तो कभी उन्हें बाजार में बेचकर अच्छा पैसा कमाता। उसका सारा जीवन जंगल और शिकार के इर्द-गिर्द घूमता था।
एक दिन, जब वह जंगल में शिकार की तलाश में घूम रहा था, उसने एक बूढ़े आदमी को देखा। वह आदमी एक चमचमाते कुल्हाड़ी के साथ चला आ रहा था। वह कुल्हाड़ी सोने जैसी चमक रही थी और काफी महंगी लग रही थी।
मदन ने उसे रोका और बात करना शुरू किया। बूढ़े आदमी ने अपना नाम राहुल बताया। उसने कहा कि वह पहाड़ के पास रहता है और रोज़ जंगल में आकर सूखी लकड़ियां इकट्ठा करता है, जिन्हें बेचकर अपनी रोज़ी-रोटी चलाता है। लेकिन आज वह बीमार महसूस कर रहा था, इसलिए बिना लकड़ियां लिए ही वापस लौट रहा था।
मदन की नज़र बार-बार उस कुल्हाड़ी पर जा रही थी। वह सोच रहा था कि अगर यह कुल्हाड़ी उसके हाथ लग जाए, तो वह इसे बेचकर बड़ी रकम कमा सकता है। उसे यह भी लगा कि शायद बूढ़े आदमी को कुल्हाड़ी की असली कीमत का अंदाज़ा नहीं है। वह उसके साथ दोस्ती करने का बहाना करने लगा।
चलते-चलते दोनों राहुल के झोपड़े तक पहुंच गए। राहुल बहुत भला इंसान था। उसने मदन को अपने झोपड़े में चलकर बैठने और चाय पीने का निमंत्रण दिया। यह सुनकर मदन को बहुत खुशी हुई क्योंकि वह झोपड़े में जाकर कुल्हाड़ी चुराने का सही मौका तलाश रहा था।
जब वे झोपड़े में पहुंचे, राहुल ने मदन को एक बेंच पर बैठने को कहा और खुद पानी लाने बाहर चला गया। यही मौका था जिसका मदन इंतजार कर रहा था। उसने फुर्ती से कुल्हाड़ी उठाई और उसे अपने बैग में छुपा लिया।
जैसे ही उसने यह किया, पूरा झोपड़ा एक चमकते हुए गोले में बदल गया। मदन की आंखें चौंधिया गईं। जब रोशनी गायब हुई, तो उसने खुद को एक मजबूत पिंजरे के अंदर पाया। आस-पास कोई झोपड़ा नहीं था। वह डरकर चिल्लाने लगा।
तभी बूढ़ा आदमी वहां प्रकट हुआ। लेकिन अब वह बूढ़ा इंसान नहीं था। वह एक खतरनाक भूत जैसा दिख रहा था। उसकी आंखों में आग की तरह गुस्सा भरा हुआ था।
मदन कांपते हुए बोला, “तुम कौन हो? तुम मुझसे क्या चाहते हो?”
बूढ़े आदमी ने गुस्से में चिल्लाकर कहा, “मैं तुम्हें मारकर तुम्हारा मांस खाना चाहता हूं!”
मदन डर के मारे कांपने लगा। उसने रोते हुए पूछा, “तुम ऐसा क्यों करना चाहते हो? मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?”
बूढ़ा आदमी फिर चिल्लाया, “तुम लालची हो! तुम हर रोज़ मेरे जंगल के निर्दोष जानवरों और पक्षियों को मारते हो। तुमने मेरी प्यारी बेटी सुनहरी चिड़िया को भी पिंजरे में बंद कर रखा है। अब तुम्हें पता चलेगा कि पिंजरे में रहना कितना मुश्किल है!”
यह कहकर बूढ़ा आदमी गायब हो गया। मदन पिंजरे के अंदर बैठा रोता रहा, लेकिन उसकी सुनने वाला कोई नहीं था।
अगले दिन, बूढ़ा आदमी फिर प्रकट हुआ। उसने पिंजरे में रोटी के कुछ टुकड़े और पानी का एक बर्तन फेंका। उसने गुस्से में कहा, “तुम्हें भूख लगी होगी, है न?”
मदन ने रोटी की तरफ देखा, लेकिन उसकी आंखों में आंसू थे। उसने कहा, “कृपया मुझे आज़ाद कर दो। मैं अब ऐसा कभी नहीं करूंगा।”
बूढ़े आदमी ने फिर गुस्से से कहा, “जब सुनहरी चिड़िया तुमसे अपनी आज़ादी की भीख मांगती थी, तो क्या तुम उसकी सुनते थे? अब तुम्हें समझ आ रहा है कि पिंजरे में रहना कितना कठिन होता है।”
मदन को समझन आने लगा कि उसने जो किया है, वह कितना गलत था। उसने वादा किया, “मैं सारी चिड़ियों को आज़ाद कर दूंगा और कभी किसी पक्षी को पिंजरे में बंद नहीं करूंगा।”
बूढ़ा आदमी गंभीर आवाज़ में बोला, “और जानवरों का क्या? तुम रोज़ निर्दोष जानवरों की हत्या करते हो। उनका फिर क्या?”
मदन ने सिर झुकाकर कहा, “मैं वादा करता हूं कि मैं शिकार करना छोड़ दूंगा। मैं अब कभी किसी जानवर या पक्षी को नुकसान नहीं पहुंचाऊंगा।”
यह सुनकर बूढ़ा आदमी कुछ देर शांत खड़ा रहा। फिर उसने कहा, “ठीक है। मैं तुम्हें आज़ाद कर रहा हूं। लेकिन याद रखना, अगर तुमने अपना वादा तोड़ा, तो मैं फिर आऊंगा और तुम्हें सज़ा दूंगा।”
यह कहते ही पिंजरा फिर से झोपड़े में बदल गया। मदन ने राहत की सांस ली। वह झोपड़े से बाहर निकला और सबसे पहले उसने अपने बैग में छुपाई हुई कुल्हाड़ी को निकाला।
उसने सोने जैसी चमकती कुल्हाड़ी को बूढ़े आदमी के झोपड़े में रख दिया और फिर घर जाकर पिंजरे में बंद सभी पक्षियों को आज़ाद कर दिया।उसे बहुत हल्का महसूस हुआ। पक्षी स्वतंत्र और खुशी से उड़ने लगे l
उस दिन के बाद से मदन ने शिकार करना पूरी तरह छोड़ दिया। वह अब जंगल में केवल घूमने के लिए जाता था और जानवरों तथा पक्षियों की आज़ादी का सम्मान करता था।कभी-कभी वह उन्हें भोजन और पानी देता है,उसे माफ करने के लिए प्रार्थना करता।
बूढ़े आदमी का सबक मदन के जीवन का सबसे बड़ा सबक बन गया। उसने समझ लिया कि हर जीव की आज़ादी महत्वपूर्ण है, चाहे वह इंसान हो या जानवर।