जलपरी नीरू
अनोप एक साधारण मछुआरा था। उसका जीवन दिन-रात पानी में जाल डालकर मछलियाँ पकड़ने और उन्हें बाज़ार में बेचने में ही बीतता था। वह अपने छोटे से गाँव के पास के तालाब में रोज़ सुबह जाल लेकर जाता और शाम को लौटता। उसकी ज़िंदगी में रोमांच कम था, लेकिन वह मेहनत और सादगी से भरा हुआ था।
एक दिन, अनूप अपने जाल को तालाब में डाल रहा था। सूरज सिर पर था, और हल्की हवा तालाब के किनारे के पेड़ों की पत्तियों को हिला रही थी। कुछ समय बीतने के बाद, जाल में हलचल महसूस हुई। अनूप ने अपनी पूरी ताकत से जाल खींचा। जाल में एक सुनहरी रंग की मछली फंसी थी। मछली चमक रही थी, मानो वह किसी खज़ाने का हिस्सा हो।
“वाह! यह तो बहुत सुंदर है,” अनूप ने खुद से कहा। उसने सोचा कि यह मछली तो अच्छी कीमत पर बिकेगी।
अनूप ने सोचा, अभी काफी समय है, मैं और मछलियाँ पकड़ सकता हूँ,उस ने कुछ और देर जाल को तालाब में छोड़ दिया और किनारे पर बैठकर इंतज़ार करने लगा। तभी उसने एक अजीब-सी आवाज़ सुनी। यह एक छोटी बच्ची की आवाज़ जैसी थी।
“अरे मछुआरे! क्या तुम मुझे सुन सकते हो?”
अनोप ने चौंककर इधर-उधर देखा। उसे वहां कोई इंसान नहीं दिखा। आवाज़ फिर आई, “मैं यहाँ हूँ, पानी के अंदर।”
अनोप घबरा गया लेकिन हिम्मत करके तालाब के पास गया और पानी में झाँककर देखा। पानी से एक मछली उस की और झाँक रही थी। यह कोई साधारण मछली नहीं थी। उसकी आँखों में चमक और आवाज़ में जादू था।
“कौन हो तुम?” अनूप ने डरते-डरते पूछा।
“मेरा नाम नीरू है,” मछली ने कहा। “मैं उस मछली की दोस्त हूँ, जिसे तुमने अभी पकड़ा है।”
“लेकिन तुम लड़कियों की तरह कैसे बात कर सकती हो।”
“मैं साधारण मछली नहीं हूँ। मेरे अंदर एक आत्मा है, एक भूत जो मुझे बोलने और जादू करने की शक्ति देता है।”
अनोप ने मछली की बात सुनी और उसका डर कुछ कम हुआ।
“तो तुम क्या चाहती हो?” उसने पूछा।
“मैं चाहती हूँ कि तुम मेरी दोस्त को आज़ाद कर दो,” नीरू ने जवाब दिया। “अगर तुम ऐसा करोगे, तो मैं तुम्हारी मदद करूँगी।”
“मदद? कैसे?” अनूप ने संदेह से पूछा।
नीरू ने बताया कि तालाब के पास एक पेड़ के नीचे खजाना छिपा है। अगर वह उसकी दोस्त को छोड़ देगा, तो वह उसे उस खजाने तक पहुँचने का रास्ता बताएगी।
अनोप कुछ पल के लिए सोच में पड़ गया। उसने अपने जीवन में कभी खजाना नहीं देखा था। उसने सोचा, “अगर यह मछली सच कह रही है, तो मेरा जीवन बदल सकता है।”
“ठीक है,” उसने कहा। “मैं तुम्हारी दोस्त को छोड़ दूँगा।”
उसने जाल से सुनहरी मछली को निकाला और धीरे से तालाब में छोड़ दिया। मछली पानी में लहराते हुए अदृश्य हो गई।
“अब खजाने के बारे में बताओ,” अनूप ने नीरू से कहा।
नीरू ने तालाब के किनारे एक बड़े पुराने पेड़ की ओर इशारा किया। उसने कहा, “उस पेड़ के नीचे ,तालाब की तरफ ज़मीन खोदकर देखो। तुम्हें वहाँ एक संदूक मिलेगा। लेकिन ध्यान रहे, वह संदूक तब तक नहीं खुलेगा जब तक तुम उस पर रखे कागज के निर्देश का पालन नहीं करोगे।”
अनोप ने झट से अपनी कुदाल उठाई और पेड़ के नीचे ज़मीन खोदनी शुरू की। थोड़ी ही देर में उसे एक लकड़ी का संदूक मिला। उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। जब उसने बक्सा बाहर निकाला तो उसे उसमें कागज का एक अजीब टुकड़ा लगा हुआ मिला।
कागज़ पर लिखा था:
“पांच बार बोलो.. नीरू जागो।”
अनोप मैसेज पढ़कर हैरान रह गए ,”यह क्या अजीब निर्देश है।” उसने सोचा, लेकिन नीरू ने कहा कि खजाना पाने के लिए उसे संदेश का पालन करना होगा।
फिर उसने वही किया, जैसा लिखा था। उसने पाँच बार जोर से कहा, “नीरू जागो। नीरू जागो। नीरू जागो। नीरू जागो। नीरू जागो।”
अचानक तालाब के पानी में हलचल हुई और पानी में से एक लड़की प्रकट हुई। उसकी उम्र लगभग 16-17 साल की थी। वह सुंदर थी, लेकिन उसकी आँखों में वही जादू था, जो नीरू मछली की आँखों में था।
“तुम कौन हो?” अनूप ने हैरानी से पूछा।
“मैं नीरू हूँ,” लड़की ने कहा। “मुझे एक शाप के कारण मछली बनना पड़ा था। लेकिन तुम्हारी मदद से मैं फिर से इंसान बन गई हूँ।”
अनोप की आँखों में खुशी और आश्चर्य के आँसू थे। उसने कहा, “तुम मेरी बेटी जैसी हो। मेरे साथ मेरे घर चलो।मेरे बच्चे नहीं हैं, मैं अकेला रहता हूँ। मैं तुम्हारा ख्याल रखूँगा।”
नीरू ने हल्की मुस्कान दी और कहा, “मैं तुम्हारे घर नहीं जा सकती, अनूप। मेरा भाग्य इंसान बनने का नहीं है। मुझे जलपरी बनना है और इस तालाब में रहना है। लेकिन तुम हमेशा यहाँ आ सकते हो, मुझसे मिलने।”
अनोप ने निराश होकर पूछा, “तुम जलपरी क्यों बनना चाहती हो?”
नीरू ने समझाया, “यह मेरी नियति है। मैं इस तालाब की रक्षक हूँ। लेकिन अगर तुम वादा करो कि मछलियाँ मारना बंद कर दोगे, तो मैं तुम्हारी मदद करती रहूँगी। तुम्हारा जीवन अच्छा और खुशहाल रहेगा।”
अनोप ने सिर झुकाकर वादा किया, “मैं अब कभी मछलियाँ नहीं मारूँगा। मैं मेहनत करूँगा और अपना जीवन बदलने की कोशिश करूँगा।”
नीरू ने मुस्कुराते हुए कहा, “यह तालाब तुम्हारा दोस्त है। जब भी ज़रूरत हो, बस मेरा नाम पुकारना, मैं आऊंगी ।”
उस दिन के बाद, अनूप ने मछलियाँ पकड़ना बंद कर दिया। उसने खेती करना शुरू कर दिया । नीरू से मिलने वह अक्सर तालाब पर जाता और उसे अपनी समस्याएँ बताता। नीरू हर बार उसे नई सलाह और ताकत देती।
अनोप के जीवन में खुशहाली आ गई। उसने सीखा कि कभी-कभी सबसे बड़ी दौलत सिर्फ पैसे या खजाने में नहीं होती, बल्कि उन रिश्तों और वादों में होती है, जो हमें सच्चा इंसान बनाते हैं।