जब वह द्वीप पर खो गई
स्नेहा एक युवा लड़की थी, उसे समुद्र, नौकायन, तैराकी बहुत पसंद थी। एक धूप भरी सुबह, वह अपने दोस्तों के साथ समुद्र में नाव की सवारी पर गयी। लहरें शांत थीं और आसमान साफ़ था। वे सभी खुश थे, गा रहे थे और यात्रा का आनंद ले रहे थे। हर कोई आनंद ले रहा था l
अचानक मौसम बदलने लगा। आसमान में काले बादल छा गए। उन्होंने समुद्र तट पर वापस जाने का फैसला किया। लेकिन वे समुद्र तट से बहुत दूर थे, समुद्र बहुत तेजी से उग्र हो गया और लहरें बड़ी हो गईं। नाव हिलने लगी, नाव पर एक बड़ी लहर आते ही स्नेहा और उसकी सहेलियाँ चिल्लाने लगीं। नाव पलट गई और सभी लोग पानी में गिर गए।
स्नेहा ने लकड़ी का एक टुकड़ा पकड़ लिया। वह चिल्लाई, लेकिन किसी ने उत्तर नहीं दिया। तेज़ लहरों ने उसे समुद्र के बीच एक छोटे से द्वीप की ओर धकेल दिया।
जब उसकी आंख खुली तो स्नेहा रेत पर पड़ी थी। उसने चारों ओर देखा , वहाँ केवल पेड़ और झाड़ियाँ थी । लहरों की आवाज़ को छोड़कर द्वीप शांत था। “मैं कहाँ हूँ?” वह फुसफुसाई। वह अकेली थी, उसके दोस्त कहीं खो गए थे l
स्नेहा द्वीप के चारों ओर घूमी। वह भूखी, प्यासी और भयभीत थी। उसे खाने के लिए कुछ नारियल मिले। ” ओह…. !!! मैं घर वापस कैसे पहुँचूँगी ?” उसने सोचा, द्वीप बड़ा नहीं था लेकिन लगभग पेड़ों और झाड़ियों से ढका हुआ था, द्वीप के चारों ओर समुद्र था, उसे समुद्र के पार कोई समुद्र तट या इमारत नहीं दिख रही थी, ऐसा लग रहा था कि समुद्र तट द्वीप से कई किलोमीटर दूर था, उसके आँसू बह निकले। वह नहीं जानती थी कि उसे क्या करना है। उसके दोस्त जीवित थे या नहीं, क्या वह कभी घर वापस आ पाएगी ? उसके मन में कई सवाल उठ रहे थे l
सूरज ढलते ही स्नेहा एक पेड़ के पास बैठ गई। रात करीब थी ,वह अकेलापन महसूस कर रही थी l अचानक, उसने अपने पीछे एक धीमी आवाज़ सुनी। “क्या तुम ठीक हो, मेरे दोस्त?” आवाज ने पूछा l
स्नेहा तेजी से पलटी, एक युवती वहाँ खड़ी मुस्कुरा रही थी। उसने सफेद पोशाक पहनी थी और उसके लंबे चमकदार बाल थे।
“आप कौन हैं?” स्नेहा ने आश्चर्य से पूछा।
“मेरा नाम सारा है, मैं यहीं रहती हूं,” महिला ने कहा।
सारा स्नेहा के पास बैठी और बोली, “चिंता मत करो। मैं आपकी मदद करूँगी ।” सारा ने स्नेहा को एक छोटी सी गुफा दिखाई जहां वह सुरक्षित रूप से सो सकती थी। सारा उसके लिए फल और पानी लेकर आई। स्नेहा को कृतज्ञता महसूस हुई लेकिन आश्चर्य हुआ कि सारा द्वीप पर अकेली कैसे रहती थी।
दिन बीतते गए और स्नेहा और सारा दोस्त बन गईं। सारा दयालु और सदैव प्रसन्नचित्त थी। उसने उसे प्रोत्साहित किया और कहा कि सब कुछ ठीक हो जाएगा, वह एक दिन सुरक्षित घर वापस जाएगी, उसने स्नेहा को मज़ेदार कहानियों से हँसाया। धीरे-धीरे स्नेहा को डर लगना बंद हो गया। उसने द्वीप की सुंदरता का भी आनंद लेना शुरू कर दिया – चमकीले फूल, रंग-बिरंगे पक्षी और साफ नीला पानी। सब कुछ बहुत सुंदर था।
स्नेहा ने सारा से कई बार पूछा कि वह अकेले द्वीप पर कैसे आई या रहती है। लेकिन सारा हमेशा मजाक में जवाब देती थी, “भगवान ने मुझे तुम्हारे लिए भेजा है।”
एक दिन सारा ने कहा, “स्नेहा, मुझे तुम्हारी मदद चाहिए।”
“किस प्रकार की मदद?” स्नेहा ने पूछा,
सारा ने कहा, “मुझे एक सुनहरी मछली पकड़नी है।” “यह द्वीप के दूसरी ओर लैगून में रहती है। यह मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है।”
“यह आपके लिए क्यों महत्वपूर्ण है?” स्नेहा ने पूछा,
“मैं इसके बिना इस द्वीप को नहीं छोड़ सकती,” उसने धीरे से कहा।
स्नेहा को समझ नहीं आया लेकिन वह मदद करने के लिए तैयार हो गई। “चलो कल सुबह चलते हैं,” उसने कहा।
अगले दिन, सारा स्नेहा को लैगून तक ले गई। पानी बिलकुल साफ़ था, स्नेहा ने कुछ चट्टानों के पास सुनहरी मछलियों को तैरते देखा। वह सोने के टुकड़े की तरह छोटी और चमकदार थी ।
“हम इसे कैसे पकड़ेंगे?” स्नेहा ने पूछा,
सारा ने कहा, “मेरे पास एक जाल है।” उसने स्नेहा को नेट का एक छोर दिया। “हम इसे एक साथ फँसाएँगे।”
वे जाल पकड़कर पानी में खड़े हो गये। धीरे-धीरे, वे एक बड़ी सुनहरी मछली के करीब चले गए। मछली तेज़ थी, लेकिन कुछ देर बाद उन्होंने उसे पकड़ लिया। सारा ने मछली को धीरे से अपने हाथों में पकड़ लिया।
जैसे ही उसने मछली पकड़ी, उसका चेहरा चमकने लगा।
“आह, तुम और अधिक सुंदर और चमकदार बनना चाहती हो।” स्नेहा ने मुस्कुराते हुए कहा।
“नहीं, ऐसा नहीं है, मुझे किसी और काम के लिए इसकी ज़रूरत थी।” सारा ने गंभीरता से कहा।
“तो फिर किसलिए,”
“कृपया डरना मत,” सारा ने धीरे से कहा।
“डर…!! किसलिए और क्यों?”
“सारा, यह मछली तुम्हारे लिए इतनी महत्वपूर्ण क्यों है? कृपया मुझे सच बताओ” स्नेहा ने फिर पूछा।
सारा ने स्नेहा की ओर देखा और कहा, “मैं तुम्हारे जैसी नहीं हूं। मैं एक भूत हूं, एक फंसी हुई आत्मा हूं।”
“क्या आप फिर से मजाक कर रहे हैं?”
“नहीं स्नेहा, मैं गंभीर हूँ, यह सच है, यह मेरा असली चेहरा नहीं है, जो तुम देख रही थी।”
स्नेहा ठिठक गयी, “कोई भूत?” वह फुसफुसाई।
“हाँ,” सारा ने कहा। “मैं कई साल पहले यहीं एक जहाज़ दुर्घटना में मर गयी थी । एक श्राप के कारण मैं इस द्वीप को नहीं छोड़ सकी । यह सुनहरी मछली जादुई है, इससे मुझे अपनी आत्मा को मुक्त करने में मदद मिलेगी।”
स्नेहा को समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहे। वह पहले कभी किसी भूत से नहीं मिली थी। लेकिन सारा उसकी दोस्त थी, सारा दयालु थी और उसने उसे जीवित रहने में मदद की थी।
“धन्यवाद स्नेहा, आपने मेरी मदद की, मैं इसे अकेले करने में असमर्थ थी ।”
“अब हमें क्या करना है। सारा,” स्नेहा ने धीरे से पूछा,
“कुछ नहीं, प्रिय.. लेकिन मुझे अब जाना होगा।” सारा ने उदास होकर कहा।
“क्या…!! मैं तुम्हारे बिना कैसे रहूंगी? तुम्हें पता है मैं यहां अकेली हूं।” स्नेहा रोने लगी,
“मुझे पता है, लेकिन मैं असहाय हूं। मेरा खुद पर कोई नियंत्रण नहीं है।” सारा ने उसका हाथ पकड़ लिया। “प्रिय तुम्हें यहीं इंतजार करना होगा, इस उम्मीद के साथ कि तुम जल्द ही घर वापस जाओगे।”
“सारा, यह असंभव लग रहा है।”
“मैं तुमसे वादा करती हूँ, तुम जल्द ही सुरक्षित घर वापस जाओगे।” इतना कहकर सारा गायब हो गई, स्नेहा बहुत उदास थी, वह फिर से द्वीप पर घूमने लगी l
वह जानती थी कि सारा के लिए अब और रुकना नामुमकिन था , सारा के वादे ने उसे कुछ आशा दी। दिन बीत गया, वह अकेली सो गई । सुबह वह एक जहाज के ऊंचे हॉर्न के साथ उठी। वह जहाज की ओर भागी, जहाज रुक गया और वह अंदर चली गई l
बहुत दिनों के बाद,आख़िरकार वह अपने घर वापस जा रही थी, वह बहुत खुश थी। जब वह जहाज में चल रही थी। वह जहाज के कोने में सारा को खड़ा देखकर दंग रह गई। वह उसकी ओर दौड़ी, सारा मुस्कुराई, स्नेहा ने उसे हर चीज के लिए धन्यवाद दिया, वे दोनों जानती थी कि यह उनकी आखिरी मुलाकात है ।