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मीरा की कहानी

बस्ती की तंग गलियों में, एक छोटी  झोपड़ी में मीरा नाम की एक  भिखारिन लड़की अपनी माँ के साथ  रहती थी। उसके बाल रूखे, चेहरे पर धूल और आंखों में अनकही कहानियां थीं। वह रोज़ शहर की चौड़ी सड़कों पर बैठकर लोगों से भीख मांगती थी। उसका जीवन कठिन था, लेकिन वह हर सुबह नए जोश के साथ उठती और सोचती कि शायद आज का दिन कुछ अलग होगा।

उसने अपने भीतर एक अजीब-सी हिम्मत पाली थी। कभी-कभी उसे लगता था कि कोई अदृश्य ताकत उसके पास है, जो उसे बुरे समय में सहारा देती है।

एक दिन, मीरा सड़कों पर बैठे हुए अपनी कटोरी में कुछ सिक्कों का इंतजार कर रही थी। तभी, उसने महसूस किया कि कोई उसके पास खड़ा है। उसने सिर उठाकर देखा, लेकिन वहां कोई नहीं था। अचानक, एक हल्की-सी हवा चली और उसके कानों में किसी की धीमी आवाज आई,”मीरा…मीरा….l” उसने चारों ओर देखा लेकिन वहां कोई नहीं था। वह पैदल चल रहे लोगों से पैसे मांगती रही। लेकिन किसी ने उस पर ध्यान नहीं दिया l

 फिर से आवाज आई, “मीरा…मीरा… मैं तुम्हारे लिए यहाँ हूँ।”

meera

उसने फिर चारों ओर देखा, लेकिन कोई भी उसके पास नहीं था। वह भ्रमित हो गई और चिल्लाई। “मुझे कौन बुला रहा है?”

“मीरा..तुम मुझे नहीं देख सकती..मैं तुम्हारे सामने हूँ।”

मीरा कांप उठी, ”तुम मुझ जैसी गरीब लड़की से क्या चाहते हो?” उसने अपना खाली बर्तन दिखाते हुए कहा।

तभी अचानक कागज का एक टुकड़ा उसके बर्तन मे  गिरा । उसने उसे उठाया और पढ़ा। उसमें एक पेड़ की तस्वीर और पता था।

“वहां जाओ तुम्हें कुछ मूल्यवान चीजें मिलेंगी” मीरा उस स्थान की ओर दौड़ी, वह पेड़ के पास एक सोने का सिक्का और कागज का टुकड़ा पड़ा देखकर दंग रह गई।

उसने सिक्का उठाया और कागज पढ़ा। “इस सिक्के को बेच दो और तुम्हें जो चाहिए वह खरीद लो, तुम्हें दोबारा भीख मांगने की जरूरत नहीं है, अपनी मां की मदद करो, मैं फिर आऊंगी।”

मीरा हैरान थी। उसने वह पास के सुनार के पास बेच दिया। उन पैसों से उसने कुछ खाने-पीने का सामान खरीदा,वह और उसकी माँ बहुत खुश थे। आख़िरकार भगवान ने उनकी सुन ली, उसकी माँ ने उसे  सलाह दी कि वह उस पवित्र आत्मा की अवज्ञा न करें।

अगले कुछ दिनों में, मीना सोचती रही  कि क्या वह  वास्तव में उसकी मदद करने के लिए वापस आये गी । उनके पास पर्याप्त भोजन भी  नहीं बचा था।

लकिन वही आवाज फिर से उसके कानों में गूंजी। इस बार, आवाज ने उसे शहर के पुराने मंदिर की ओर इशारा किया। वह संकोच के साथ वहां गई और मंदिर के पीछे छुपी एक छोटी-सी मिट्टी की मटकी देखी। मटकी में कुछ गहने और पुराने नोट थे।

मीरा को समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब कैसे हो रहा है। लेकिन उसे एहसास हुआ कि यह धन केवल उसके जीवन को सुधारने के लिए नहीं, बल्कि उसे  दूसरों की मदद  भी करनी होगी । उसने उस पैसे से अपने लिए कुछ अच्छे कपड़े खरीदे और कुछ भूखे बच्चों को खाना खिलाया।

अब मीरा का जीवन धीरे-धीरे बदलने लगा l आवाज़ उसकी ज़रूरतें पूरी करने में उसकी मदद कर रही थी। वह अब पहले जैसी लाचार और अकेली नहीं थी। वह अपने आस-पास के लोगों की मदद करने लगी थी। लेकिन उसके दिल में यह सवाल बार-बार उठता था कि यह चमत्कारिक आवाज कौन सी है, जो उसे बार-बार सही दिशा दिखा रही है।

एक रात, जब वह अपनी झोपड़ी में सो रही थी, उसे एक सपना आया। सपने में उसने एक वृद्ध व्यक्ति को देखा, जिसकी आंखों में दया और चेहरे पर शांति थी। वह व्यक्ति उसे देखकर मुस्कुराया और कहा, “मीरा, यह सब मैंने तुम्हारे लिए इसलिए किया क्योंकि तुममें दूसरों की मदद करने की सच्ची भावना है। मैं एक समय में इस शहर का निवासी था और मेरा उद्देश्य हमेशा लोगों की मदद करना था। लेकिन मेरी मृत्यु के बाद मेरी दौलत बेकार हो गई। मैंने तुम्हें चुना है क्योंकि मुझे यकीन है कि तुम इसे सही तरीके से इस्तेमाल करोगी।”

सुबह उठने के बाद, मीरा को सपना याद था। उसने अपना सपना और उस व्यक्ति की इच्छा अपनी माँ को बताई। उसकी माँ ने उसे फिर सलाह दी, उसकी इच्छा ईमानदारी से पूरी करो। मीरा  समझ गई  कि वह वृद्ध व्यक्ति एक परोपकारी था, जिसने अपनी सारी संपत्ति दूसरों की भलाई के लिए छोड़ी थी। लेकिन अब, उसकी आत्मा मीरा के माध्यम से अपना अधूरा काम पूरा करना चाहती थी।

मीरा ने उस दिन से ठान लिया कि वह अपनी जिंदगी को न केवल अपने लिए बल्कि दूसरों के लिए भी समर्पित करेगी। वह आवाज की मदद से शहर के अलग-अलग हिस्सों में छुपे हुए खजाने खोजने लगी। हर बार जब उसे कुछ मिलता, तो वह उस धन का एक हिस्सा अपने लिए रखती और बाकी को जरूरतमंदों में बांट देती।

एक दिन, आवाज ने उसे शहर के सबसे पुराने कब्रिस्तान की ओर बुलाया। वहां पहुंचकर उसने देखा कि एक पुराना पत्थर हिला हुआ था। पत्थर के नीचे एक संदूक था, जिसमें एक पत्र और बहुत सारी दौलत थी। पत्र में लिखा था:

“मीरा, अब तुम मेरी आखिरी इच्छा पूरी कर चुकी हो। इस धन से तुम अपना जीवन सुधार सकती हो। लेकिन याद रखना, यह दौलत केवल साधन है, मकसद नहीं। हमेशा दूसरों की भलाई के लिए काम करती रहना।”

मीरा ने वह धन लिया और उससे एक छोटा-सा अनाथालय बनवाया। वह उन बच्चों की देखभाल करने लगी, जो सड़क पर बेसहारा थे, जैसे कभी वह खुद थी।

मीरा ने अपने जीवन को दूसरों की सेवा में समर्पित कर दिया। वह हमेशा कहती, “जो मुझे मिला, वह मेरे लिए नहीं, बल्कि उन सभी के लिए है, जिन्हें इसकी जरूरत है।”

इस तरह, मीरा की यात्रा एक भिखारिन से एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व बनने तक पूरी हुई। वह न केवल खुद बदली, बल्कि उसने अपने आसपास की दुनिया को भी बदल दिया।

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