ट्रेन में भूत की कहानी
वह एक ठंडी, कोहरे भरी शाम थी l प्रीत ने शहर में अपना काम ख़त्म कर लिया था और सप्ताहांत से पहले घर जाना चाहता था। ट्रेन का प्लेटफार्म लगभग खाली था , ट्रेन की सीटी की आवाज़ धीरे-धीरे स्टेशन के पास गूँज रही थी, उसकी हेडलाइट्स धुंध को चीर आगे बढ़ रही थीं।
प्रीत को हमेशा से ट्रेन से यात्रा करना पसंद था। गाड़ी की हल्की-हल्की हिलोरें और पटरियों की लयबद्ध खड़खड़ाहट उसे हमेशा शांति का एहसास कराती थी। उसे एक खाली डिब्बे में अपनी सीट मिली और वह खिड़की के पास बैठ गया। बाहर कोहरे के कारण खिड़की के शीशे से कुछ भी साफ़ देखना मुश्किल हो रहा था, लेकिन प्रीत को कोई फ़र्क नहीं पड़ा। उसे आगे एक लंबी यात्रा करनी थी, और वह बस कुछ शांति चाहता था।
ट्रेन चलने लगी और जल्द ही, स्टेशन कोहरे में गायब हो गया। उसने देखा कि डिब्बा असामान्य रूप से खाली था। रात के इस समय अधिकांश ट्रेनों में अपने गाँव लौटने वाले यात्रियों की भीड़ होती थी, लेकिन आज रात, केवल कुछ ही लोग थे। उसे यह अजीब लगा, लेकिन प्रीत को भीड़ से अधिक शांति पसंद थी।
उसने अपना बैग खोला, एक किताब निकाली और पढ़ना शुरू कर दिया। ट्रेन की स्थिर गति से उसे नींद आने लगी और जल्द ही, उसकी पलकें भारी हो गईं। जैसे ही वह सोने जा रहा था, उसे ट्रेन में अचानक ठंड महसूस हुई। डिब्बे में तापमान गिर गया, और वह कांपने लगा, उसने अपनी जैकेट को अपने पास खींच लिया। यह अजीब था क्योंकि ट्रेन के डिब्बे आमतौर पर गर्म होते थे।
तभी अचानक डिब्बे की लाइटें टिमटिमा उठीं। प्रीत ने उलझन में ऊपर देखा। पूरी तरह बुझने से पहले लाइटें फिर से टिमटिमा उठीं, और डिब्बे में अंधेरा छा गया। वह अभी भी पटरी पर चलती ट्रेन की स्थिर आवाज़ सुन सकता था, लेकिन बाकी सब कुछ शांत था। ऐसा लग रहा था कि डिब्बा खाली हो गया था ।
प्रीत को थोड़ी बेचैनी महसूस हुई। उसने अपने फोन की फ्लैशलाइट चालू की, जिससे डिब्बे के चारों ओर प्रकाश की एक छोटी सी किरण फैल गई। कुर्सियाँ ख़ाली थीं, वह बिल्कुल अकेला था।
वह खड़ा हुआ और डिब्बे के दरवाज़े की ओर बढ़ा, जैसे ही उसने दरवाज़े के हैंडल की ओर हाथ बढ़ाया, उसने अपने पीछे एक आवाज़ सुनी।
“मेरी सहायता करो…”
प्रीत रुक गया , आवाज़ कमज़ोर और उदासी से भरी थी। वह धीरे से घूमा, उसका दिल जोरों से धड़क रहा था। अपने फ़ोन की धीमी रोशनी में उसे कुछ दिखाई दिया। एक धुंधली शारीरिक आकृति l
एक महिला डिब्बे के आखिरी छोर पर, खिड़की के पास खड़ी थी। उसने एक पुरानी, फटी हुई साड़ी पहनी हुई थी, उसके लंबे बाल उसके चेहरे पर लटक रहे थे। वह बहुत डरावनी लग रही थी l
वह उसकी ओर बढ़ने लगी, प्रीत का गला सूख गया। उसने पूछा, “तुम कौन हो?” उसकी आवाज कांप रही थी। उसने अपने फोन की रोशनी उसके चेहरे पर डालने की कोशिश की। उसका हाथ कांप रहा था। वह और करीब आ रही थी ।
“कृपया… मेरी मदद करो…” वह फुसफुसाई, उसकी आवाज़ दर्द से भरी थी। उसकी काली आँखें प्रीत को घूर रही थीं।
प्रीत पीछे हट गया, उसके पैर काँप रहे थे। वह नहीं जानता था कि क्या करना है। “मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ?” उसने धीरे से पूछा।
“मैं यहां फंस गई हूं,” वह फुसफुसाई। “मैं यह ट्रेन नहीं छोड़ सकती।”
“क्यों? आप ट्रेन को अगले स्टेशन पर छोड़ सकते हैं”,
“यह मेरे लिए संभव नहीं है,मैं बस यही चाहती हूं कि कोई मेरी मदद करे…और मेरे परिवार को बता दे…मैं मर गई हूं, कृपया मेरा अंतिम संस्कार करें.. मुझे शांति मिल सके।”
“ तुम मर गई ”, प्रीत यह सुनकर हैरान हो गया । वह उसके सामने खड़ी होकर उस से बात कर रही थी l
“तुम क्यों कहती हो कि तुम मर गई”, मैं तुम्हें देख सकता हूं l थोड़ी देर के लिए उसने सोचा, वह पागल थी और उसकी याददाश्त चली गई थी।
उसने अपना सिर थोड़ा झुकाया, जैसे कि कुछ याद करने की कोशिश कर रही हो। “मैं भटकती आत्मा हूं…मैं यहीं मर गई …इस ट्रेन में…एक दुर्घटना में, वर्षों पहले, हर कोई सोचता है कि मैं कहीं खो गई हूं, मेरा परिवार अभी भी मेरा इंतजार कर रहा है। मैं हमेशा के लिए बीच में फंस गई हूं।” उसकी आवाज़ खाली डिब्बे में गूँज रही थी।
इतना कहने के बाद अचानक उसका शरीर एक काली छाया की तरह हो गया।
प्रीत ने पहले भी भूत के बारे में कहानियाँ सुनी थीं, लेकिन उसने कभी उन पर विश्वास नहीं किया। लेकिन अब, एक असली भूत के आमने-सामने खड़े होकर, उसे एहसास हुआ कि कहानियाँ सच थीं।
“आपका परिवार कहाँ रहता है ?”प्रीत ने कुछ साहस दिखाया l
“गांव में…कसमा गांव…नहर के पास…मेरे पति रोजा..बेटा लाली…कृपया उन्हें बताएं..रनों कभी वापस नहीं …घर…l
प्रीत को उसकी बात सुनकर बहुत दुःख हुआ,उस ने सिर हिलाया, “मैं उन्हें ढूंढूंगा और उन्हें बताऊंगा, मैं वादा करता हूं।”
भूत को थोड़ा आराम मिला , “धन्यवाद,” वह फुसफुसाई।
धीरे-धीरे वह गायब होने लगी,प्रीत काफी देर तक वहीं खड़ा रहा, उसका दिल अभी भी धड़क रहा था। उसे यकीन नहीं था कि जो कुछ हुआ था वह सच था या कोई बुरा सपना। लेकिन ठंडी हवा और ट्रेन की चलती आवाज उसे बता रही थी कि यह सच था ।
जैसे ही वह गायब हुई, डिब्बे की लाइटें फिर से जल उठी , ठंड भी खत्म हो गई।
वह वापस बैठ गया, उसका दिमाग तेजी से दौड़ रहा था। वह उसके गांव “कस्मा” तक पहुंचने के लिए उत्सुक था।
ट्रेन पहले की तरह चल रही थी l