आशा की अजीब दोस्त
कड़ाके की सर्दी थी। ठंडी हवा चल रही थी। एक लड़की, जिसका नाम आशा था, सड़क के किनारे बैठी थी। उसने अपनी छोटी सी पुरानी शाल में खुद को लपेट रखा था, लेकिन उसकी नाजुक काया ठंड से कांप रही थी। आशा अनाथ थी। बचपन से ही उसकी जिंदगी संघर्षों से भरी थी। उसकी मां उसे बचपन में छोड़कर चली गई थी, और उसके पिता को उसने कभी देखा ही नहीं था।
आशा के पास न तो रहने का ठिकाना था और न पेट भरने का कोई साधन। वह दिनभर सड़कों पर भीख मांगती, कभी किसी ढाबे के बाहर बचा-खुचा खाना खा लेती, तो कभी भूखे पेट सो जाती। उसकी आंखों में न कभी नींद होती थी और न ही सपने।
एक दिन, जब वह रेलवे स्टेशन के पास भीख मांग रही थी, एक आदमी ने उसे झिड़क दिया और गुस्से में कहा, “यहां से भागो! काम करो, भीख क्यों मांगती हो?” उसकी बात सुनकर आशा की आंखों में आंसू आ गए। पर उसने कुछ नहीं कहा, क्योंकि जवाब देने की ताकत उसमें थी ही नहीं।
रात का समय था। ठंड और बढ़ गई थी। आशा ने फुटपाथ पर एक कोने में अपने लिए जगह बना ली और वहां बैठकर अपने दिन भर की मुश्किलों के बारे में सोचने लगी।
तभी, एक अजीब सी लड़की उसके पास आई। उसकी आँखें कोमल थीं, और उसके चेहरे पर एक शांत मुस्कान थी। लड़की ने आशा को देखा और उससे पूछा, “क्या तुम ठीक हो?”
आशा ने हैरानी से लड़की को देखा। वह पहली बार किसी को इतनी दयालुता से बात करते हुए देख रही थी। उसने लड़की को बताया कि वह ठंड से कांप रही है और भूखी है।
लड़की ने कहा, “चलो, चलो मेरे साथ।”
आशा, थोड़ी हिचकिचाते हुए, लड़की के पीछे चल दी। वे एक सुनसान गली में चली गईं, जहाँ एक पुराना मकान था। वह उसे एक कमरे में ले गई। कमरा छोटा था, लेकिन गर्म था। आग की लपटें चिमनी में जल रही थीं, और कमरे में एक सुखद गर्मी फैल रही थी।
लड़की ने आशा से पूछा, “तुमारा नाम क्या है?”
“आशा,” उसने धीरे से कहा l
“मेरा नाम वानी है,” लड़की ने मुस्कुराते हुए कहा।
आशा को कुछ अजीब लग रहा था वानी एक सुंदर लड़की थी, उसकी आँखों में एक गहराई थी, एक ऐसी गहराई जो आशा को डराती भी थी। लेकिन फिर भी, वानी के साथ रहना उसे आरामदायक लगा।
फिर वानी ने आशा को कुछ खाना दिया।,आशा खुद को रोक नहीं पाई, वह वानी को जानने के लिए उत्सुक थी l
“तुम कौन हो?” उसने उत्सुकता से पूछा l
“मुझे अपनी दोस्त ही समझो,” वानी ने मुस्कुराते हुए कहा l
“दोस्त, लेकिन मैंने तुम्हें पहले कभी नहीं देखा, तुम मेरी मदद क्यों कर रहे हो?”
“तुम मुझे नहीं जानते , लेकिन मैंने तुम्हें कई बार इधर-उधर घूमते देखा है, मैंने तुम्हारी मदद करने का फैसला किया। चिंता मत करो मैं तुमसे कुछ भी नहीं मांगूंगी।”
आशा को कुछ राहत महसूस हुई। उसने उसे धन्यवाद दिया और वह उसके पास सो गई।
सुबह जब वह उठी तो वानी ने उसे कुछ कपड़े दिए और कहा,” रेलवे स्टेशन के पास उस छोटे रेस्टोरेंट मे जाओ और काम मांगो, तुम्हें मिल जाएगा और फिर कड़ी मेहनत करना।”
आशा वहां गई और काम मांगा, उसे आश्चर्य हुआ जब मालिक ने ज्यादा सवाल किए बिना उसे बर्तन धोने का काम दे दिया। उसने उसे दो समय का खाना और सोने के लिए जगह देने का भी वादा किया। यह आशा के लिए एक सपने जैसा था। वह जल्दी ही समझ गई, यह सभ वानी की वजह से था l
काम मुश्किल था, लेकिन आशा ने बिना शिकायत के काम किया। उसके हाथ बार-बार साबुन से फट जाते, पर उसने कभी हार नहीं मानी। कभी-कभी वानी उससे मिलने आती थी, वह उसे कड़ी मेहनत करने के लिए प्रोत्साहित करती थी। धीरे-धीरे ढाबे के मालिक और ग्राहकों को उसकी ईमानदारी और मेहनत पसंद आने लगी।
एक दिन वानी एक स्कूल टीचर के साथ रिस्टोरेंट में आई। उसने स्कूल टीचर मिस्टर लोधी को आशा के बारे में बताया, मिस्टर लोधी भी एक दयालु व्यक्ति थे। उन्होंने आशा को अपने स्कूल में पढ़ाने का फैसला किया। उन्होंने उसे स्कूल कॉन्टिनेंट में नौकरी की पेशकश भी की।
दिन बहुत तेजी से बीत गए , आशा ने पढ़ना और लिखना सीख लिया, वह स्कूल कैंटीन में सबसे अच्छी रसोइया भी बन गई। उसने अपना घर किराए पर ले लिया। उसके जीवन में कुछ भी कम नहीं था।
एक दिन जब आशा अपने नए घर में शिफ्ट हो रही थी, उसने वानी को अपने घर आने के लिए कहा, वानी ने उससे एक दिन आने का वादा किया।
आशा ने कड़ी मेहनत जारी रखी, वह गरीब बच्चों को पढ़ाती ,कभी कभी वह रेलवे स्टेशन जाती और भिखारियों को खाना खिलाती।
एक दिन वह उस सड़क पर जा रही थी जहां वानी पहली बार मिली थी। उसने वानी से मिलने की आशा मे उस पुराने घर जाने का फैसला किया। उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ, वहां कोई घर नहीं था। जमीन के बीच में एक बड़ा पुराना पेड़ था l पहले उसे लगा कि वह गलत जगह पर है,लेकिन आसपास सब कुछ वैसा ही था।
“आशा, क्या तुम मुझे ढूंढ रही हो।”आशा पीछे मुड़ी, वानी खड़ी मुस्कुरा रही थी।
आशा की आँखें खुशी से भर गईं। “तुम कहाँ थे?” तुम मेरे घर क्यों नहीं आए? मुझे तुम्हारे लिए चिंता हो रही थी, वानी ।”
वानी ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा,” आशा अब तुम अपना जीवन स्वयं संभाल सकती हो, लेकिन अभी भी बहुत बच्चों को मेरी मदद की ज़रूरत है।”
“वानी , तुम अब कहाँ रहती हो? अब यहां कोई घर नहीं है।” आशा ने पेड़ की ओर इशारा करते हुए कहा।
“आशा मुझे घर की ज़रूरत नहीं है, मैं हर जगह हूँ।”
“ तुम्हारा क्या मतलब है, वानी ? हर जगह, तुम मेरे साथ रह सकती हो,”
“आशा, मैं तुम्हारी तरह असली लड़की नहीं हूं, मैं भूत हूं, जो असहाय बच्चों की मदद करना चाहती है । मुझे घर या भोजन की जरूरत नहीं है।”
“भूत, क्या तुम मजाक कर रहे हो? तुम्हें पता है कि मेरे पास सब कुछ तुम्हारी वजह से है, तुम ऐसा क्यों कहते हो, तुम भूत हो? तुम परी हो।” आशा रोने लगी।
वानी चुपचाप आशा को देख रही थी, वह जानती थी कि आशा के पास अब वह सब कुछ है जिसकी वह हकदार थी l
“वानी ….वानी ..!!!!, सच बताओ तुम कौन हो?” आशा ने उसका हाथ जोर से दबाते हुए कहा।
“आशा, मैं भी कुछ साल पहले आपकी तरह भिखारी थी , एक ठंडी रात में रेलवे स्टेशन के पास मेरी मृत्यु हो गई। मैं तब तक शांति से नहीं रह सकती जब तक भूखे, बेघर बच्चे ठंडी रात में बाहर रहेंगे। इसमें कई साल या सदियां लग सकती हैं। मेरी यात्रा जारी रहेगी।”
“तुम्हारा मतलब है, मैं तुम्हें फिर कभी नहीं देख पाऊंगी, तुमने मुझसे कहा था कि तुम मेरे दोस्त हो,” आशा ने रोते हुए कहा, उसका चेहरा आंसुओं से भरा था l
“हां, तुम मेरे दोस्त हो, मैं तुमसे फिर मिलने आऊंगी,आप गरीब बच्चों की मदद करते रहो ।”
इतना कहकर वानी गायब होने लगी, आशा भीगी आँखों से उसे देखती रही ।